इसे राजनीतिक मजबूरी कहें या राजनीति का ओछापन। केन्द्र में शासित संप्रग सरकार को जब-जब जिसकी जरुरत हुई, उसकी उसने पूरी आव भगत की और उसकी शर्तों पर उससे समझौता किया तथा दूसरी तरफ़ जिसने उसका साथ छोड़ा उस पर उसने कानूनी डंडा चला दिया। इसका जीवंत उदाहरण हमें उत्तर प्रदेश से मिलता है। चूँकि उत्तर प्रदेश में देश के किसी भी अन्य प्रदेशों की तुलना में लोक सभा की सबसे अधिक सीटें हैं, इस लिहाज़ से राजनीति के परिपेक्ष में उत्तर प्रदेश को देश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रदेश माना जाता रहा है। अतः कोई भी राजनीतिक दल केन्द्र में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों की अवेहलना नही कर सकता। किसी भी सरकार को उत्तर प्रदेश के किसी न किसी राजनीतिक दल का समर्थन लेना ही पड़ता है
इन्ही तथ्यों को ध्यान में रखते हुए केन्द्र की संप्रग सरकार का जब गठन हो रहा था तब मुलायम सिंह यादव जिनके ३९ सांसद चुनकर आए थे उनका बहुत आव भगत हुआ। और उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा दल बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा सुश्री मायावती पर पुराना ताज कोर्रीडोर का मामला सी.बी.आई को पुनः सौंप दिया गया। परन्तु बीच में राजनीतिक समीकरण बदले और राजनीतिक दोस्त दुश्मन और राजनीतिक दुश्मन दोस्तों में तब्दील हो गए। मुलायम सिंह ने केन्द्र सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया जिससे वह उसके दुश्मनों की फेहरिस्त में आ गए। और बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्षा सुश्री मायावती जी जिन्होंने अपना समर्थन केन्द्र में शासित संप्रग सरकार को दिया तो उन पर से सी.बी.आई ने केन्द्र के आदेशों पर मुकदमा वापस ले लिया और मुलायम सिंह पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। परन्तु यह स्थिति भी ज्यादा समाये तक नही चली और सुश्री मायावती ने अपना समर्थन केन्द्र सरकार से वापस ले लिया। इसके फलस्वरूप वही हुआ जिसका सबको अंदेशा था, केन्द्र सरकार के आदेशों पर सी.बी.आई ने फ़िर से उन पर ताज कॉरिडोर मामले में मुकदमा दायर कर दिया। और मुलायम सिंह जो की उनकी आँखों की चुभन का पर्याय बन गए थे, केन्द्र सरकार को सबसे नाज़ुक वक्त पर जब सरकार वाम दलों द्वारा समर्थन वापस ले लेने के कारण अल्प मत में आ गई थी, ने अपने दल का समर्थन उसको दे कर उसको संजीवनी बूटी का काम किया जिससे वह उसकी नज़रों में फ़िर से दोस्त बन गये और उनपर लगे सारे आरोप अब स्वतः ही अर्थहीन हो जायेंगे और वह बिना किसी कानूनी दावपेंच के आगे का वक्त गुजार लेंगे।
यह तो एक उदाहरण मात्र है, ऐसे सैकडों उदाहरण बड़ी ही आसानी से मिल जायेंगे की कैसे कोई राजनीतिक दल दुश्मन से दोस्त और दोस्त से दुश्मन में बदल जाता है और कैसे वह इन सबका फायदा उठाता है और कैसे वह इन्ही सब का शिकार भी बन जाता है।
भारतीय दर्पण टीम ..........
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
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कहते हैं, मुसीबत कैसी भी हो, जब आनी होती है-आती है और टल जाती है-लेकिन जाते
जाते अपने निशान छोड़ जाती है.
इन निशानियों को बचपन से देखता आ रहा हूँ और ख...
1 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । इस नये हिन्दी ब्लाग का स्वागत है ।
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