शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

अज्ञात में अज्ञानता का पुट..

कुछ दिनों से बड़ी थकान महसूस हो रही थी तो सोचा कि किसी मल्टीप्लेक्स में जाते हैं क्योंकि उससे बेहतर उपाए और क्या हो सकता है थकान मिटाने के लिए, इससे थकान की थकान मिट जायेगी और एक और फिल्म अपने खाते में जुड़ जायेगी.

इस वजह से पिछले हफ्ते मैं राम गोपाल वर्मा की फिल्म अज्ञात देखने गया. फिल्म कैसी है या कैसी हो सकती थी यह मैं दर्शकों के ऊपर छोड़ना चाहूँगा, परन्तु फिर भी एक ऐसी बात इस फिल्म में जरुर थी जिसने मुझे लिखने को मजबूर कर दिया. राम गोपाल वर्मा जी फिल्म को पूरा करने और इसे भयावह बनाने के फेर में ऐसे उलझे की कुछ मूल-भूत बातों को ही नज़रंदाज़ कर गए. मैं चाहूँगा की पाठकगन इस बिंदु पर ध्यान दें.

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति परेशान, दुखी या मुसीबत में हो तो भगवान्-देवी माँ के स्मरण मात्र से ही (यदि सच्चे मन से स्मरण किया हो तो) वह उन मुसीबतों से मुक्ति पा लेता है. मुझे लगता है कि समस्त पाठकगन मेरी इस बात से सहमत भी होंगे. किसी भी आम व्यक्ति कि तरह मै भी जब डरा हुआ होता हूँ या परेशान होता हूँ तो भगवान् - देवी माँ को याद करता हूँ और यकीन मानिए की वो समस्या हल हो जाती है.

परन्तु रामू जी ने फिल्म में इस बात को महत्व देना उचित नहीं समझा. फिल्म जब लगभग अपनी समाप्ति पर ही थी, तब एक ऐसा द्रश्य देखने को मिला जिसने मुझे बहुत व्याकुल और बेचैन कर दिया, और मुझे आज फिर कुछ लिखने को मजबूर कर दिया. फिल्म में नायक (हीरो) का सहायक (हेल्पर), जिसे इस फिल्म में दुर्गा माँ का उपासक दिखाया है और जो माँ को जब-तब स्मरण करता रहता है. फिल्म के एक मोड़ पर जब वह घोर मुसीबत में घिरा जाता है और माँ से प्रार्थना व पूजा-अर्चना करता है कि वह उसे मुसीबतों से बाहर निकालें, परन्तु उसके बावजूद भी उस सहायक को अंत में मृत दिखाया जाता है. जो कि किसी भी हिन्दू ही को क्या किसी भी धर्म के मानने वालों को उचित नहीं लगेगा, कि जिनसे वह अपने प्राणों कि रक्षा कि आस लगाए हुए हो वह उसकी मदद तक न कर सकें.

लगता है रामू जी ने फिल्म में डर का एहसास कराने के लिए ही इस द्रश्य को अपनी फिल्म में दर्शाया और इस पर ख़ास तौर पर मेहनत की ताकि कोई भी अपने को सुरक्षित न समझे और भय के कारण थर्राए. रामू जी ने सहायक के प्राणों की आहुति लेने में ज़रा सा भी संकोच नहीं किया, उन्होंने ज़रा सा भी ध्यान इस ओर नहीं दिया की ईश्वर में आस्था रखने वाले लोगों पर इसका क्या असर होगा और उनकी इस पर क्या प्रतिकिया होगी.

मुझे लगता है कि इन सभी द्रश्यों से फिल्म निर्माण से जुड़े हुए गणमान्य हस्तियों को बचना चाहिए क्योंकि यह द्रश्य व्यक्ति को यह मानने पर विवश करते हैं कि जब हम मुसीबत में होते हैं तब हम अकेले होते हैं और कोई भी हमारी रक्षा नहीं कर सकता, और यह मान्यता इंसान को बजाये कि मजबूत बनाने के उसे कमजोर ही बनाते हैं.

धन्यवाद. भारतीय दर्पण टीम.