शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

मिलिटरी के तर्ज़ पर पुलिस स्वतंत्र इकाई क्यूँ नहीं?

पुलिस का उपयोग देश की अन्दरूनी जन-रक्षा हेतु उसी तरह किया जाता है जिस प्रकार किसी भी देश में सेना का उपयोग अन्य देशों की अनैतिक गतिविधियों को रोकने के लिये किया जाता है। भारत में गृहरक्षा विभाग के अन्तर्गत आने वाला यह विभाग, देश की कानून व्यवस्था को संभालने का काम करता है। अपराधिक गतिविधियों को रोकने, अपराधियों को पकडने, अपराधियों के द्वारा किये जाने वाले अपराधों की खोजबीन करने, देश की अंदरूनी सम्पत्ति की रक्षा करना व अपराधियों को अदालत में प्रस्तुत करके उनको सज़ा दिलवाना, पुलिस विभाग का काम है।इतने गंभीर व नैतिक कार्य करने के बावज़ूद भी पुलिस को उतने सम्मान की द्रष्टि से नही देखा जाता जितना कि देश की सेना को देखा जाता है। दोनों कि जब भी तुलना की जाती है तो सेना पुलिस के मुकाबले काफ़ी आगे दिखती है।

इसके पीछे क्या कारण है ? क्या कभी इसकी तरफ़ आपने सोचा है ?? कभी इसकी तरफ़ गंभीरता से ध्यान दें आपको स्वतः ही पता चल जायेगा की पुलिस की इस गत के लिए राजनीति जिम्मेदार है। पुलिस एक्ट १८६१ के मुताबिक, पुलिस को राज्य सरकार के अधीन रखा गया, जिस पर राज्य सरकार का पूरा नियंत्रण होता है, केन्द्र सरकार भी इसमें दखल नहीं दे सकती। केन्द्र सरकार उन्ही प्रदेशों की पुलिस का नियंत्रण अपने पास रख सकती है जो की केन्द्र शासित हैं। अब जब पुलिस किसी भी सरकार के सीधे नियंत्रण में हो, और उसका ( पुलिस का ) उस ही पर नियंत्रण न हो तो ऐसे में हम कैसे उस पर ऊँगली उठा सकते हैं।
जो भी सरकार सत्ता में आती है सबसे पहले पिछले सरकार के समय के पुलिस महानिदेशक को अपदस्थ करने की कोशिश करती है और अपने पसंद के महानिदेशक को बैठाना पसंद करती है ताकि वह उनके इशारों पर काम करें। और फ़िर एक-एक करके उन पुलिस कर्मियों की छटनी की जाती है और उन्हें सबक सिखाया जाता है जिन्होंने उनके खिलाफ काम किया हो जब वह विपक्ष में थे या जिन्होंने उनके निर्देशों को ना माना हो। फ़िर जितने भी मुक़दमे उन पर होते हैं, उनको उन पर से हटाने का निर्देश दिया जाता है। जिसको उन्हें मानना ही पड़ता है और न मानने की स्थिति में उनको प्रदेश के किसी सुदूर इलाकों में भेज दिया जाता है सज़ा के तौर पर। यदि तब भी वह सरकार के ग़लत व अनैतिक कार्यों का विरोध करता है तो उसको बर्खास्त कर दिया जाता है और उस पर कई प्रकार के मुक़दमे ठोक दिए जाते हैं। इन विपरीत हालातों में पुलिस कैसे सुचारू रूप से कार्य कर सकती है? और कैसे वो जनता का विश्वास हासिल कर सकती है? लेकिन फ़िर भी ऐसा नही है की पूर्ण रूपेण पुलिस भ्रष्ट व सरकार की जी हुजूरी करने वाली हो, परन्तु फ़िर भी पुलिस किसी न किसी तरह सरकार के दबाव में आ ही जाती है। जब तक पुलिस, सरकार के अधीन रहेगी और राजनेताओं के हाथों की कठपुतली बनी रहेगी तब तक न तो उसका भला होगा न वह अपने कार्य सुचारू रूप से कर पाएगी और न ही वह जनता का विश्वास हासिल कर पाएगी, जितना सेना को अर्जित है। सेना को यह सम्मान इसलिए हासिल है क्योंकि वह भारत सरकार के अधीन आते हुए भी स्वतंत्र ईकाई है, उस पर उसका नियंत्रण है।अतः मेरा मानना है की यदि पुलिस को वाकई में हमें वो मुकाम देना हो जो अमेरिका या ब्रिटेन जैसे देशों में है तो सबसे पहले उसे सरकार के चंगुल से छुटकारा दिलाएं. इसके लिए हम सभी को पहल करनी होगी.
जय भारत।
भारतीय दर्पण टीम

2 टिप्‍पणियां:

Rajesh R. Singh ने कहा…

पुलिसवालों का कथन है कि वे शांति स्थापित कैसे कर पाएंगे, उन्हें तो नेताओं, मंत्रियों, अफसरों की सुरक्षा और सेवा-टहल में ही अपना पूरा स्टाफ लगाना पड़ता है। पुलिस को यही सिखाया जाता है कि अपने से बड़े का हुक्म मानना ही उसकी ड्यूटी है। यह हुक्म सही हो या गलत। जब अपराधी चुनाव जीतकर मंत्री, सांसद एवं विधायक बन जाते हैं तो उन्हें सेल्यूट मारना ही पड़ता है। उनके आदेश पर निर्दोष लोगों को हवालात में बंद करना पड़ता है तथा अपराधियों को छोड़ना भी पड़ता है। यदि वह ऐसा नहीं करे तो उसे मनपसंद पोस्टिंग नहीं मिलती है। हो सकता है कि ईमानदार रहकर एक पुलिसकर्मी जीवन भर मुंशी ही बना रहे और उसे फील्ड की पोस्टिंग ही नहीं मिले। इन दिनों तो थाने नीलाम हो रहे हैं। कमाओ और ऊपर वालों को खिलाओ अन्यथा पड़े रहो, पुलिस लाइन में। अपने लघु वेतन से तो पेट भी नहीं भर सकता। उसे भ्रष्टाचार करने को विवश होना ही पड़ता है।

बेनामी ने कहा…

Some military info http://pourconvaincre.blogspot.com/