आज देश फ़िर से दंगों और फसादों में घिरता नज़र आ रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में चाहें वो जम्मू हो या इंदौर, कश्मीर हो या दिल्ली, सभी जगह विरोध स्वरुप हिंसा हो रही है। यह विरोध जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा भू आवंटन तथा अंत में उसको निरस्त करने को लेकर है. कश्मीर में विरोध जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा ' श्री अमरनाथजी श्राईन बोर्ड ' को दी हुई भूमि को लेकर है, तो जम्मू व देश के अन्य हिस्सों में भूमि वापस ले लेने को लेकर है। यह कैसा विरोध है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष की भावनाओं का आदर किए बिना सिर्फ़ अपने लिए ही सोच रहा है! क्या यह वही देश है जिसको पूरी दुनिया सदियों से शांतिप्रिय देश व एकता का पर्यायवाची समझती रही है ? और अगर हम आज भी इसे वही देश समझते हैं, तो ऐसे हिंसक विरोध क्यूँ हो रहे हैं और क्या साबित कर रहे हैं? यह एक धधकता हुआ प्रश्न है।
क्या यह सब स्वयम हो रहा है या इसके पीछे राजनीतिक दलों का राजनीति का खेल है? यह जानना बहुत जरूरी है। देश तो आज भी एकता कि मिसाल कायम रखे हुए है परन्तु यह राजनीति कि गन्दी बिसातें हैं जिसने देश को कई गंभीर आघात पहुंचायें हैं। यही वो एक कारक है जो सत्ता में आने मात्र के लिए देश को और देश वासियों को तोड़ने से भी नही चूकते। राजनेता देश कि जनता को उनके धर्म के आधार पर बाँट कर व उनको एक दूसरे के ख़िलाफ़ बरगला कर अपना उल्लू सीध करते हैं, और यही सब इन हिंसक विरोधों का कारण है। क्या राजनेता इस संवेदनशील मुद्दे को जनता के बीच ले जाकर हिंसक विरोध करने के बजाये मिलकर बीच का रास्ता नही निकाल सकते थे?
देशवासियों को अब राजनितिक दलों कि गन्दी राजनीति को समझकर, उनको करारा चांटा मारते हुए जबाव देना चाहिए कि कोई भी ताकत हमे जुदा नही कर सकती, हम एक थे, हम एक हैं और सदा रहेंगे।
भारतीय दर्पण टीम ..........
मुसीबतें भी अलग अलग आकार की होती है
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कहते हैं, मुसीबत कैसी भी हो, जब आनी होती है-आती है और टल जाती है-लेकिन जाते
जाते अपने निशान छोड़ जाती है.
इन निशानियों को बचपन से देखता आ रहा हूँ और ख...
1 वर्ष पहले
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